ज्यूं सिणफिण निजर आवै
धंवर में लुक्योड़ी घाटी माथै चरती
लरड़ियां-बकरियां
मगसी झांईं वाळा निजर आवै झाड़-बांटका
यूं रा यूं
कणैई-कणैई
मूंन में दट्योड़ा वरण सुणीजै
पण
उणसूं कांईं सांधौ लागै?
अणसुभट सुणीजता सबदां रौ
अरथ काढणौ दोरौ
सबद
घणां ई सुणिया
घणां ई बोलिया सबद
अबै तौ माठ झालौ—
'बोल-बोल आयस बूही, मूंनां कियो रचाव।
मन रंजण मन आवियौ, मनड़ा मौज मनाव॥