म्हां सगळा

बासदी रा

बळबळता खीरा

म्हारा बीरा

तपलै थूं

धाप'र तपलै

कंपकंपावती ठंड में

उनियास पाय'र हंसलै

कीं फरक

हरज री बात कोनी

पण थूं

जे म्हांनै छेड़ण री

बिना किणी कारणै

चींपियै सूं घुद्दा घालण री

कुचमाद सरू कर दी

अचाणचक

तौ

म्हां मांय सूं कोई अेक

अर जरूत पड़ी तौ अेकजुट

सगळा

थारी कुचमादी नै

चखाय देवांला मजौ

कर देवांला राख!

ध्यान राख

म्हां कोनी राख

म्हां हां

बासती रा

बळबळता खीरा

म्हारा बीरा!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : चैनसिंह परिहार ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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