हर बार म्हैं

मुंडेर सूं टिरा दियो जावूं

आस्था-अनास्थावां रै

हींडै कानी

जठै पैली सूं झूल रैयो हुवै

आदम व्यवस्थावां रा तार वणतो

सरनाटो

जको है-नै तोड़नो आवै

उचित नीं हुवै

उण दायरै में

जको है उण'नै जोड़नो

काचैपणै री हदां में

खुद री निजरां में

नरकवाड़ै में जावणो

ऊंधै मुंहड़ै पड़ण वाळो

अंजाम सूं बेखबर म्हैं

कद ताईं अठी सूं उठै

लुढ़कतो रैयसूं

हिरमची चेहरां में ढ़ूंढतां

म्हारी आस्था

कांई यूं बूढी हुय जासी

भौचक्क म्हैं

बंद किवाड़ा री जंग

कद तांई चाटतो रैसूँ

इण भांत तो

मैं भर जासूं

उण म्हारै पैलीवाळै भाईलै दांई

अर म्हारी जग्यां लैय लेसी

म्हारै लारै उभो म्हारो भायलो

जको अबार तांई भै रा तार

बणतो रैयो है।

स्रोत
  • पोथी : सवाल ,
  • सिरजक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ ,
  • संस्करण : 1
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