अब सावळ सोवौ, नींद सूं अेकरूप व्हेय’र

बिसरौ दिन नै, तारिख सूं उतर जावौ

चांद अर तारा नै इंद्रयां में आवण दौ

भार बिहूण, सीतळ नाव—

रगत भर्‌या सपनां सूं तिसळ-तिसळ जावौ

कंवळा अर आंधी रा आंधळघोटां सूं आजाद

अकास रै लखांण सारू बिरछां रै आगै

गुपचुप पसर जावौ

भै नै भगावौ, लोगां नै भूल जावौ

रड़कां रा नैना नागा टींगप बण जावौ

चेत करौ वां सगत हाथां नै ज्यां सूं अेक दिन

थे धरती रै गरभ सूं निकाळीज्या हा

अंधेरै री पुड़तां में ख़तरा भर्‌योड़ा है

लुक़्या रैवौ, दीठ री जरुत नीं

सत्ताहीण कर न्हांखौ खुदनै बोलाबोला—

हाल थे जीवण रै नास अर मौत सूं अणसैंधा हौ।

स्रोत
  • पोथी : परंपरा ,
  • सिरजक : होर्स्ट लैंग ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थांनी सोध संस्थान चौपासणी
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