सरहद माथै

आपरी रोपेड़ी

तारां अर खंभा रै

दोन्यां कानी

कोसां तांई

बापरेड़ी सुनेड़

अर रूंख-खग बिनां री

धौळी-छिबकै वाळी

थळी

जकी

अठै सूं सुरू होय’र

कच्छ रै रण सूं

हुवती

पूगै अरब सागर तांई

कैयीज्यै

रणखार

जकी अेक छांट पड़ता

हुयज्यै दळदळी

अर

पछै अठै बगै सलूणी पून।

जद

आपां मजहबी खीरां माथै

जीभ नैं आंटो देवां

अठै

गिचगिचावती माटी मांय

चालै पाणी

तारां तळैकर

अर धरी रैयज्यै

संगीना अर असलो।

आपां सूं उळट

ईं रणखार मांय

बारै सूं तो निगै आवै

लूण ईज लूण

पण

मांय मांय

तारां रै दोन्यां कानी

बांटै मीठास

अर सारै-सारै रै

गांवां मांय

करल्यै बंतळ।

इणनैं

फगत सलूणी

जमीन समझणो

भूल है।

स्रोत
  • पोथी : रणखार ,
  • सिरजक : जितेन्द्र कुमार सोनी ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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