मुरधर री रिंधरोही

पग पसारती रेत

इळा रेत आभै रेत

रेत पर रेत

सिणियां रेत

बूई रेत

खींपां फोगां बांठां रेत!

रूखा-सूखा रूंख

औढ्यां उदासी

दबायां राग रंग

जाणै कनफड़ा जोगी

अेक उदास वातावरण च्यारूंमेर

सिणियां में सरणाटो

बूई में बंजरपणो

आकड़ां रा पीळा पात

फोगड़ां रा सूखा गात

जीयाजूण उदास

बंजर धरती बंजर आकास

सगळा आप आपरो अनेसो जतावै

भाग भरोसै सुख सुपना जोवै

उण बगत सेवट अेकलो

फूलां सूं लदपद

होडाहोडी सूं अलायदो

लड़तो बंजरपणै सूं

भिड़तो सरणाटै सूं

भजावतो उदासी

पसरावतो सुखरासी

मनमौजी मस्त

माटी रै फरज सूं नाळबंध

सुगंध विहुणो

भरतो रेत-रंग

जाणै रूड़ो रंगरेज

करतो आगत री उडीक

ऊभौ रगताभ रोहीड़ो।

स्रोत
  • पोथी : मुळकै है कविता ,
  • सिरजक : प्रकाशदान चारण ,
  • प्रकाशक : गायत्री प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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