रागां रास रचावै, धरती आभै सूं सरमावै

फागण रंग भर लायो रे।

दूल्हो बण आयो मतवाळो होळी रो त्यौहार,

घूंघट रै उडतै पल्लै सूं पून करै मनुहार,

आज बंधी मौसम रै माथै लाल कसूम्बल पाग,

गैर्या पग ठुमकावै, सगळा रिळ-मिल मोद मनावै,

जौहर घिर-घिर आयो रे रागां रास...

पड़ै डांडिया, बजै नगारा, ऊपर उतरी फाग,

म्हारै मन रै मानसरोवर छिड़ी बावळी आग,

आज हंस चुग-चुग पोवैला मोतीड़ां री माळ,

कूंकूं थाळ सजावै, सुगनी नैणां सूं दरसावै,

ढोला रंग सवायो रे। रागां रास...

रूपवत्यां रा चेहरा चमकै लाल चूनड़ी मांय,

सिंदूरी मैंदी हाथां री, मोट्यारां नै भाय,

उठतै हिवड़ां से भाईड़ा ऊंचो चढसी गेड़,

साथीड़ा मदमावै, गोऱ्यां रातो रंग बरसावै,

बैला शंख बजायो रे रागां रास...

रूप पसीजै रूपाळ्यां रो नैणां उमड़ी प्रीत,

गेवरियां रै हिवड़ै छायो सारंगै रो गीत,

मौसम धूम मचावै, रातां रसियां सूं बंध जावै,

होळी तिलक लगायो रे।

रागां रास रचावै, धरती आभै सूं सरमावै,

फागण रंग भर लायो रे॥ रागां रास...

स्रोत
  • पोथी : पणिहारी ,
  • सिरजक : बुलाकी दास बावरा
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