घर री

मान मरजादा

बाप री आण

पाघ री कांण

रोप दियो पग

आंख्यां में पण

सुपनां कुंआरा।

आंख्यां ढळकै

गरळ-गरळ आंसूड़ा

दिखण में दिखै

घर रो मोह

रड़कै पण प्रीत।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : हनुमान प्रसाद 'बिरकाळी' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
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