रात कद मानैं निज रो रात हौवणौ

जदैई राखै बुगचै में ल्हुकोय’र,

लप-भर तारा अर निबळौ स्सौ चांद,

सूरज रै सैंजोड़ सूरज

पण

सूरज होवै

बात क्यूं भूलै रात बावळी।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : राजू सारसर 'राज' ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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