राखी रखाण म्हारा बीर !
पीड़ा का सावण लूम्या रै-
नैणां छळक्यो रै खारो नीर- म्हारा बीर
राखी रखाण म्हारा बीर ।।
धरा बांधै राखी खून पसीनां का मोती दे,
गगन मांगै छै रै जुझारां जिसी ज्योती दे,
इतिहास मांगै कै करज केई पीढ्यां को
राखी तागा गंगा अर जमना का तीर- राखी रखाण...
राखी नै बंधावै तो माथै को मोह छोड़ दे,
भुजबन्ध छोड़ दे, कंगण डोरा तोड़ दे
राखी ललकारै छै रसम कोरी कोई ना,
साता में मिलैगा फेरू रांझा अर हीर- राखी रखाण...
आजादी आकुळ हो बांधण आई राखी रै,
कळाई बढ़ादी ज्यानै कोख उजळादी रै,
आपणै लेखै तो या तिरंगी धजा राखी छै,
आपणै प्राणां को यो पचरंग चीर- राखी रखाण...
आबरू छै राखी की खेतां में, खलिहाणां में,
मंदिर-मस्जिद जिसा कळ कारखानां में,
आंगण तो एकता को संतरी रूखाळैगो,
देळ पै देखो रै पहली मारै जेई मीर- राखी रखाण...
काळ जे पड़ै तो मरदानगी ही लाजै रै,
सूरापण सोवै अर बेईमानी गाजै रै ,
रगत रगत नहीं पाणी छै ऊं रग में,
जींकै होतां टूट जावै सीमा की लकर- राखी रखाण...
राखी में केई का आंसू, केई को सिन्दूर छै,
धरती की धूळ, मां को दूध भरपूर छै,
राखी में सोगन्ध छै जुझारां के रगत की,
राखी छै रामेस्वरम्, राखी कसमीर
राखी रखाण म्हारा बीर।