म्हारी गीली आंख्यां हरेक पल थनैं जोवै

सून्य नैं घूरती म्हारी निजरां

थारी ओळूं लावै अर

म्हारै मनड़ै नैं हींडा देवै

ठाह है म्हनैं कै

तूं है म्हारै अड़ै-गेड़ै

पण जीवड़ो अमूझतो रैवै

थारी ओळू में

आंख्यां आली

मन सूखो-सूखो

नीं सैय सकू बिछोह

घर लागै उजाड़ खेत ज्यूं -

अै मां! तूं पूठी आय जा

मां, याद आवै म्हारै बालपणै री

याद आवै गोदी मांय तूं आपरै ओढ़णै सूं

म्हारै सागै हैस-पैस रमती

मां, तूं म्हनैं म्हारै बालपणै री और बातां बता

ओकर छाती तूं चेप फेरूं लाड लडा

पूठी आय जा मां

तूं तो जननी है सिस्टी री

फेर कांई तीरथ है?

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सुनील गज्जाणी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
जुड़्योड़ा विसै