प्रेम जीवन रौ रस हुवै

प्रेम आभै सूं ऊंचो

अर रसातळ सूं ऊंडो हुवै

प्रेम किणी सांचे में नीं ढळै

ईज प्रेम ही तो होवै

जिकौ फीकै मूंडै पर

हरख रौ आखर मांड जावै

प्रेम तो होवै—

जको सगळी सिमावां नै तोड़ न्हांखै

कदै रेल री पटरी पर कदै नदी-नाळै

अर कदै फाँसी पर लटकतो

करै सिद्ध आपरी पवित्रता।

प्रेम निश्छल है तो विकराळ

प्रेम ठंडी फुंहार है

तो उकळती अगन

प्रेम मिनख रो सच्चो साथी है।

प्रेम क़ुदरत रो इनाम है,

प्रेम फगत प्रेम है

नीं बतायो जा सके अर नीं नाप्यो जा सकै।

स्रोत
  • सिरजक : पवन 'अनाम' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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