प्रेम जीवन रौ रस हुवै
प्रेम आभै सूं ऊंचो
अर रसातळ सूं ऊंडो हुवै
प्रेम किणी सांचे में नीं ढळै
ओ ईज प्रेम ही तो होवै
जिकौ फीकै मूंडै पर
हरख रौ आखर मांड जावै
ओ प्रेम ई तो होवै—
जको सगळी सिमावां नै तोड़ न्हांखै
कदै रेल री पटरी पर कदै नदी-नाळै
अर कदै फाँसी पर लटकतो
करै सिद्ध आपरी पवित्रता।
प्रेम निश्छल है तो विकराळ ई
प्रेम ठंडी फुंहार है
तो उकळती अगन ई
प्रेम मिनख रो सच्चो साथी है।
प्रेम क़ुदरत रो इनाम है,
प्रेम फगत प्रेम है
नीं बतायो जा सके अर नीं नाप्यो जा सकै।