(अेक )
प्रेम
जींनै कर लैबा सूं
बेसी अबखौ
निभा लैबो
न्हं तो
जमानौ कद बिसरै छै
डाढ़ा बीचै
धरबौ बीज धतूरा का।
(दो)
रास पै
सतौल साधता नट की
हात की लाकड़ी की नाई
होवै छै प्रेम
जी साध्या बिना
घणौ मुस्कल छै
साध लैबो
जिनगाणी को सतौल।
(तीन)
महंगाई का बगत में
सब सूं सूंघो
प्रेम
जदी तो
जुगां तूं तुलतौ आ रह्यौ छै
बिना कांण
सांसा का बाटां सूंं
आंख्यां की थाकड़ी।
(च्यार )
प्रेम
जै कदी
बड़ा तड़कावू
कांकड़ कै रूंख
झूलतौ दीखै
कदी
रेलवाई की पटरी कै ओळी-दोळी
भयौ मलै
रगत का डाबरां में
ज्यात की पंचायत
करबा वांळा मनख
कद मानै
कद गदानै छै प्रेम।