सतवती रै सांतनूं सूं दोय जाया पूत
पण बधियां बिना ई अेक
चितरांगद
कठै ई काम आयो राड़ में
गंधख अरि सूं
दूसरो हो विचित वीरज—
ब्याव री चिंता हुई डीलां लियां, जिणरी
बड़ा भाई बहादुर, राजकरता, गंगसुत नै
सुणियो कठै ई राज कासीराज
रचियो है स्वयंवर
अपछरा सी आपरी तीनूं कंवारी धीवड़्या रो
नाम अंबा, अंबिका, अंबालिका हा
पूगग्या गांगेय ई उण रूप-रण में
सांतनूं रा भंवर सारू
बीनणी नै जीत उण सजिया स्वयंवर में
दिखावण कळा सर-संधाण री
घेर तीनूं राज कन्यावां
उठा रथ, घाल चाल्या हस्तिनापुर
जीत रण गांगेय, पौरूस री अथक जैकार सुणता!
अेक राजा, नाम हो सौबाळगढ़ रो साल्व
फिर्यौ आडो,
अरज की—
म्हैं करूं हूं प्रीत इण अंबा कुमारी सूं
म्हनैं आ सूंप दो बाबा
भलां ई पूछलो
आ ई करै है प्रीत म्हासूं
जे स्वयंवर होवतो निरबिघन
आ करती वरण म्हारो
म्हारा हेत रो तो मांन राखो
रीस में अंगार ज्यू बळता
विजय मद गहळ में गांगेय
करदी अणसुणी आ अरज
उणनै कूट, मरदन मांन रो कर
लेय आया हस्तिनापुर रायकंवरी
ब्याव रा फेरा फिरण लागा
करी पाछी अरज अंबा
करूं म्हैं प्रीत म्हारा साल्व सूं पूरै मनां-ग्यांना
म्हनैं परणाय दूजा नै
करो हो पाप कै है पुन्न ओ नियमां प्रमांणै?
थे पुजीजो हो जगत में नेम रा निरमाण करतां
थे घड़ो परिवार, बंस, समाज,
रचना थे कबीलां री करो
नारी नै बरत मरजी मुताबिक
थे बतावो—
प्रीत माथै वस किणी रो?
प्रीत करणो अेक मन रो हक नीं क्यूं?
पाप क्यूं है प्रीत करणो?
म्हैं करूं हूं प्रीत बिसवाबीस
जिणरो संग सोधूं,
परस फूलूं
दरसणां रींझूं,
मुगध मन बीजळी जैड़ो सैचांनण
होवै सदा ओळूं, उडीकां!
थे म्हनैं उण सूं छुडा
क्यूं बांध दो हो अेक अणजाण्या मरद सूं?
खातरी कीकर होवै थांनै
कै म्हैं सेजां रमूला खुलै प्रांणां
हर करूंला अंगदानां में नीं म्हारै प्रण री?
याद कोनी करूंला म्हैं अवस म्हारा मीत प्रेमी री?
बात जंचगी कीं मगज में देवव्रत रै
खोल कांमण डोरड़ा, गठ जोड़णी
अर बरी, मोळी
भेज दी वो साल्व राजा रै कनै
अंबा कंवारी झूरती नै
ढोल बाजा, मांन आदर सूं, सजा रथ-पालकी
साल्व नटग्यो—
माजनो म्हारो गंवा, म्हैं होयो हतवीरज
जिकी रै कारणै, उणनै वरूं?
हाथ पकड़्यो हरण करग्यो,
अेक वो ई वर, कंवारी रो होवै
माफ कर अंबा म्हनैं तो माफ कर!
बावड़ी पूठी नूंवै बौहार सूं आहत
समरपित फेर होवण नै हरण करता कनै
पण विचितवीरज न थांमी
कह्यो थारो मन कठै ई और है
थूं और री है-जा अठा सूं!
बाप रो घर छूट्यो
प्रेमी न राखी
परणतां वर बींद ने पैली नटी वा
फेर वो नटग्यो
हरणकरता खण लियोड़ो बिरमचारी रो!
घणी आहत, घणी ही अेकली अंबा
घणा अपमान री दाझी!
रूळयोड़ी अेक पाळा सूं
खिलाड़ी रै पगां ठुकरीजियोड़ी दूसरे पाळै
कोई फूलां दड़ी ज्यूं!
रीस अंबा री नियोजित ही फगत गांगेय माथै
फूंक सूं ज्यूं नाळ में दे झाळ
सोनार गळावे लाल गेरू चुपड़ियोड़ा स्वरण नै!
निकळगी अंबा मुलक में
राजबंसां नै घणी उकसावती
अन्याव री देती दुहाई
रीस में खुद होम री ज्यूं झाळ परझळती!
करै कुण जुध पण गांगेय जैड़ा अनड़ सुभटां सूं
गमावै राज कुण
इण अेक छोरी रा पखा में ऊभ
खुद री कुण गमावै लाज
डरतो भीस्म सूं
आखो भुजाबळ जीवतो समुदाय औघड़!
अेक दिन चढगी हिंवाळा तप करण नै
रीस रै फण री बिखम फुणकार
रा विस सूं डस्योड़ी
बैर सूं निबळी
कठण तप री हुतासण में पिघळती!
साधना सूं रीझग्या संकर महेसर
कह्यो-कन्या!
थूं अवस पूरो करैला बैर
पण इण जलम में नीं
जलम तो दूजो थनै लेणो पड़ैला!
सुण विधाता रै लिख्योड़ा लेख
वा क्यूं देर करती
बैठगी काठां, मनोबळ सूं जगा अगनी
उणी छिण भसम होयगी
प्रीत रो इण भांत वा करती पराछीत
उण पुराणा फिनिख पांखी ज्यूं
जलम लेवण दुबारा, राख बणगी।