कींकर कोई सूय लेवै

दूजै रै पांती री नींद

कींकर कोई जाग लेवै

दूजै रै पांती रो जागण

फुटरापै सारू आरसी में नीं

अंतस में झांकणो पड़ै

प्रीत री आडी नैं अरथावण सारू

कम सूं कम चाळीस पगोथिया तो चढणा पड़ै।

स्रोत
  • पोथी : चीकणा दिन ,
  • सिरजक : डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : विकास प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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