म्हारै, च्यार साल री झोटड़ी,

लागी कोनी आस।

माऊ जा’र करी,

भौमियै जी रै,

अरदास।

हे म्हाराज छाछ री

नारळी सर करज्यो।

खोलड़ी पाडकी ही ल्यावै,

इस्या जोग करज्यो।

थारै कड़ाही कर स्यूं।

बां रै बिदेशी नस्ल री,

कुतड़ी खातर,

बिदेसी नस्ल रो कुतो,

घरां ल्यार बांध्यो,

भोमियै जी रै,

नारेळ चाढ्यो,

अरदास करी,

म्हाराज म्हारली कुतड़ी

कुकरड़ी ना ल्यावै।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक (दूजो सप्तक) ,
  • सिरजक : प्रहलाद राय पारीक ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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