जका देवता

सवा रिपीये रै

परसाद में

हो जांवता झट राजी

बै इज देवता

उठग्या

सौ-सौ कोस दूर

सवा मणी सूं

नी आया नेड़ै

फरक है फगत

आछा-माड़ा दिनां रौ!

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : हरीश हैरी ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
जुड़्योड़ा विसै