सियाळै री रात सूं

सीयां मरतो कागलो

पाड़ौसी री हेली रे डागळे,

उगते सूरज रै

तावड़ै सूं तापै

आपरौ डील

अर जोवै म्हारी बाखळ का'नी

बाखळ बिचाळ बणैड़ो

तुळछी रो बड़लौ अर उणरै

साथै री चौकी माथै

म्हारी मां रा

न्हाखेड़ा बाजरी रा दाणा

चुगती चिड्यां।

कागलो झपट्टो मारै

चाणचक,

चिड्यां मांय जाणेभाटो पड़ग्यो

हुय जावै सुनैड़

चिंचांट करतो चिड़कली रो बच्चियो

तुळछी रै बड़लै नीचे हांफीज रैयो हो

पीढै बैठी मां

सिसकारो न्हांखै

अर लगोलग

जोंवती रैयी

बड़लै का'नी।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत काव्यांक, अंक - 4 जुलाई 1998 ,
  • सिरजक : श्याम महर्षि ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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