इंकलाब रै आंगणियै बिखर्‌योड़ी लोही री बूंदां

कोरौ कूं-कूं जांण कदै मत तिलक लगाजो

भूखा नागा मिनखां रौ भख लेवण वाळां

आजादी री बरसगांठ तौ पछै मनाजो।

आज अलेखूं बातां पूछण आयौ थांसू

जे दाय पड़ै तौ आंरौ पुख्ता म्यांनौ दीजौ

काया रा पसरायोड़ा सै काचा तांतण

ऊंचै माळै पूग्यां मत मोद भरीजौ

घर में बनवास भोगतां बरस बीतिया

पासां री आसा में कद तक धारां धीजौ

म्हांनै जग में जूंण बाळतां बरस बीतिया

एकर तौ झाळ झेललौ थें सीजौ

आडंबर रा ऊंचा महल झुकावण वाळां

खरै मोल री झूंपड़ियां सूं मत टकरीजौ

इंकबाल रै आंगणियै बिखर् ‌योड़ी लोही री बूंदां

कोरौ कूंकूं जांण कदै मत तिलक लगाजो

भूखा नागा मिनखां रौ भख लेवण वाळां

आजादी री बरस गांठ तौ पछै मनाजो।

नुंवौ चांनणौ व्हियौ बींनणी आई घर में

सीख बडेरां दीनी इण नै सावळ बरतौ

आप आप रौ खुणौ दबावण खेंचातांणी

बैठौ बापड़ौ घर रौ टाबर भूखां मरतौ

सगळा मोटा राखै सोटा दाकल धमकी

कायौ व्हैग्यौ दंड झेलतां पेटौ भरतौ

जाचक निजरां आस विहूणौ आभौ निरखै

इण धरती रौ अंदाता तौ जीवै डरतौ

रांमराज री थोथी बातां भाखण वाळां

हियै रांम नै धारौ इणरी साख बचाजो

इंकलाब रै आंगणियै बिखर्‌योड़ी लोही री बूंदां

कोरौ कूं कूं जांण कदै मत तिलक लगाजो

भूखा नागा मिनखां रौ भख लेवण वाळां

आजादी री बरसगांठ तौ पछै मनाजो।

थोथी बातां दही बिलोवौ खाली हांडी

करौ बरस में दो-दो उच्छब सांग सजावौ

हाथ जोड़ सब ऊभा रैवै तौ थे राजी

हक मांगण नै आवै उणरै गोळी बावौ

कागद माथै घोड़ा दौड़े कदै थाकै

मोटा-मोटा सबदां रा मत तोतक ठावौ

पीढ़ी-पीढ़ी बाड़ खींच दी खार बीजियौ

चौकूंटां पांगरिया बूंटा घरै लिजावौ

भरी भीड़ में वो देखौ टाबर ऊभौ है

सोच समझनै हमकै नागा बारै आजो

आजादी रै आंगणियै बिखरी है लोही री बूंदां

कोरौ कूंकूं जांण कदै मत तिलक लगाजो

भूखा नागा मिनखां रौ भख लेवण वाळां

इंकलाब री बरस गांठ तौ पछै मनाजो।

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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