पोथी अक्षर, ग्यान समंदर।

गिरै निरक्षर, तिरै धुरंधर।

च्यार धाम जद परळय व्यापी,

सत्यं बच्यो शिवं सुंदरं।

खोज बदी का मिटै जुग—जुग,

आये बरस बठै दसकंधर।

अरथी बारै काढ दिखातो,

रीता हाथां गयो सिकंदर।

टी.वी. आगै टाबर भूल्या,

हरया समंदर, गोपीचंदर।

आं में भेद बावळा करता,

जिसी मसीत उस्यो मंदर।

मस्ती में जी यार बिहारी

बोल दमादम मस्त कलंदर।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी गंगा जनवरी-मार्च 2015 ,
  • सिरजक : बिहारी शरण पारीक ,
  • संपादक : अमरचन्द बोरड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ज्ञानपीठ संस्थान