स्याळ अर लूंकी सीत में,

खोदै ऊंडी खोह।

बाजै डाफंर बायरौ,

पोचौ महीणौ पोह॥

डग डग करती ठंड में,

धूजै नर री देह।

चुंणता डोकां छांनड़ी,

जे मुलक वरसतौ मेह॥

मरिया भूखा मांनवी,

रोया सगळी रात।

पोह मास पतझड़ जिसौ,

तरवर झड़िया पात॥

टुग टुग जोया टाबरां,

माईतां रा मुक्ख।

माथौ भांगण काळ रौ,

कद मिटसी दुक्ख॥

स्रोत
  • पोथी : रेवतदान चारण री टाळवी कवितावां ,
  • सिरजक : रेवतदान चारण कल्पित ,
  • संपादक : सोहनदान चारण ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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