म्हैं काळौ

म्हैं कांणौ

म्हैं कोझौ

थांनै हंसता देखू तो लखावै

हाल मरयौ कोनी

सेरसाह

म्हैं माटी हौ कदै'ई

इण गत सूं पैली

जाणता हुवोला थै

रचना पड़रूप हुवै सिरजणियै रौ

म्हारी कांणाई

म्हारी कोझाई

उणियारौ है बींरौ ई!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : सांवर दइया ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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