आपरी टेबल माथै

रात रा पढतां-पढतां

अेचबेच री बत्ती गुल व्हियां

म्हैं कांई सोचूं

बतावण में कांई सार!

म्हारो सोच

पूरी जगती में किणी अरथ रौ कोनी!

पण अैड़ै इज किणी मौकै

अंधारा में थूं कांई सोचै

इणरौ कयास लगावूं

जे थूं नीं सोच

इणनै यूं सोचै तो थारौ कांई जावै?

बस, अैड़ा ऊंधा-सूधा

मन में पंपाळ जगावूं।

माफ करावज्यौ

व्हाला-पाठकां

म्हैं अैड़ो कवि हूं

जिकौ अेक खास मनगत सूं पढियां इज

समझ में आवूं।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो पत्रिका ,
  • सिरजक : चन्द्र प्रकाश देवल ,
  • संपादक : नागराज शर्मा
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