आप बोल्या-

''कविता मांडो!''

म्हूं नै कविता कर दी।

आप बोल्या-

''ब्होत बढ़िया कविता छै!''

म्हारा होटां पै

मरी-मरी हांसी आगी।

म्हूं अपणी कविता पै

न्हं हरक्यो,

आप की बात पै हांस्यो।

ऑर्डर मलतां ईं

सप्लाई कर्या

सीमेंट जसी

म्हारी कविता

अब म्हं नै सोबा न्हं दे।

बार-बार

सपनां में आवै छै,

बोलै छै!

जस्यां वां का क्हबा पै

थं नै म्हारी रचना करी

उस्यां ईं-

म्हारां क्हबा पै

वां को

मण्यो मसक दै।

स्रोत
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : कवि री कीं टाळवीं रचनावां सूं
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