क्यूं मिली मनैं

मिनखा देही?

कांई इण रो कारण

कोई पुरबळै जलमां रा पुन्न?

तो मैं पिसतावूं

क्यूं कर्‌या इस्या पुन्न,

जे मनैं मिलती पंखेरूं री जूण

हूंती म्हारी किरिया मूळ बिरत्यां रै सारू

कोनी बंधता म्हारै पाप’र पुन्न?

कोनी करतो जियां मिनख करै वासणा रै वस हू’र

कदाचार, अनाचार, व्यभिचार,

कोनी हूंतां कोई भेखधारी म्हारा धरमगुरू

कोनी हूंतो मैं कोई राजनेता रो पिछलग्गू

जका करावै मिनर’र मसीत रै नांव पर टंटा

लफणै खातर सत्ता,

कोनी हूंतो कोई इस्यो धन्नू सेठ

जको बणा सकतो मनैं आप रो चमचो

कोनी बणा सकै मिनख इस्यो कोई कानून

जको कर सकतो मनैं कोई जुरम में

कचेड़ी में हाजर,

मनैं स्यात मारतौ कदेई कोई

ग्यान रो ठेकैदार हित्यारो मिनख

म्हारै मांसरै सुवाद खातर

का म्हारी फुठरी पांखां तांईं

जकी नै बैच’र बो कमातो दमड़ा

मनैं हुवै घणो पिसतावो

क्यूं हुयो मैं मिनख

कोनी जकै री तिसणा रो कोई अंत

हुवै करोड़ां में कोई सो’क संत

नहीं’स घणकरा तो हुवै

मिनखा देही में

परतख राकस।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कन्हैयालाल सेठिया ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास
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