पिणघट

जठै पिणियारियां

जावती पाणी नै

करती मन री बात।

पिणघट

जठै तैईजता तळा

जूतती बळदां री जोड़ी

मिनख करता मसखरै

करता एक दूजां नै मनवारां

समझता पाणी रौ मोल।

पिणघट

जठै भरीजती पखालां

पिणियारियां ऊंचती घड़ा

कांख में टाबर

माथै उंच्योड़ौ घड़ो

पगां में बाजती

कड़ला अर जोड़ां री

रमझौळ

हाथां में खनकती चूड़ा

री खनक

पथ चालती पिणियारियां।

पिणघट

आज नीं रिया

नीं रियौ पाणी रौ मोल

नीं रैयी बळदां री जौड़ी

नीं रैयी बरत

अर नीं रैई मिनखां री मसखरियां

नीं रिया वो घड़ा

अर नीं रैयी वो ऊंचण वाळी लुगायां

तळा माथै सरकीजगी सिला

बिखर ग्या पिणघट॥

स्रोत
  • सिरजक : नाथूसिंह इंदा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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