ऊ ज्हाँ खड्यो छो
ऊ नै कबरबिज्जू कै नाई व्हाँ ई खोदबो सुरु कर द्यो
ऊ खोदतो ग्यो खोदतो ग्यो
अर पींदो है’रबा की छटपटाहट मे
खूनमखून कर ल्या हाथ
पण पींदो नं पायो
अर उ थाक’र वां इं बैठ ग्यो
मईना बीत ग्या साल बीत ग्या
ऊ बैठ्यो रह्यो आँख्याँ मींच’र कोई तपस्वी कै नाई
घणा सालाँ बाद जद ऊ की आँख खुली
तो सामै नीळो आकास छो
ऊ का काँधाँ पै कैई पंछी वाँ का घोंसला में बैठ्या छा
कैई जीव ऊ का डील में छोटा छोटा सुराग कर चुक्या छा
ऊ आपणा प्हैली का कद सूँ दस पंद्रह फीट ऊँचो होग्यो छो
अचानक ऊ नै अहसास होयो
पींदो मलबा को
ऊ कै पाँवां सूँ खड़ी जडाँ पींदो है’र आयी छी
घणी गहराई में
अब ऊ नै बढ़णो छो ऊपर
घणो ऊपर।