म्हैं

बंजर थार में उभौ

सुखो बांठो

थूं

हरखती हरियल

पिलूंदी

सुण -

थारौ हेत

कर सकै हरियल

लाय बळते

सूखे बांठै री थाकळ

काया नै|

स्रोत
  • सिरजक : पूनमचंद गोदारा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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