स्हैर होवै

चायै गांव-कस्बो

आज भीड़ में

कोई नीं जाणै

अेक दूजां नै

नीं पिछाणै

अठै तांई कै

गाँव जावै तो

बूढां री ट’गी (याददास्त) सूं

जांतो रेवै...

टाबरां रै लेखै तो

याद दिराबा-बताबा सूं

जाणै छै-पिछाणै छै

पण

आज नीं भूली

खूंटै बंधी गाय

टिचकारी देय'र बुलातां

कान ऊंचा कर्यां

झांकै छै

कन्नै आवै छै

दूजां नै तो

मारबा दौड़ै छै

पण

घर-हाळां नै तो

पिछाणै छै!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली पत्रिका ,
  • सिरजक : रामदयाल मेहरा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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