तड़का सूं ईं
लगा आई छी
च्यार चक्कर तो
रेवड़ी, बाड़ा
अर छंदवाड़ का
कोई न्हं, मन म्हं हांसी,
उदासी
अर राम-रोस कोई सूं!
बस चूल्हा-चौका,
फरण्डा,
अर सरका हैण्डपंप सूं
भर’र लावां म्हं ई तीन बेवड़ा
आ जावै छै दफेर,
फूंका दे-दे’र सळगातां बी
नीठ कठण सूं
सळग्यो चूल्हो
रोटी-पाणी,
बरतन-बासण सूं नमट’र
खेत खलाणा मं बी
झूंक दे छै जीव
झुझकर्यो पड़्यां पाछ
आ’र संभाळै छै
छोरा-छोर्यां नीं तो,
ताव-बुखार तो न्हाई न!
ऊही तड़का को काम
करणी पडै़ छै स्याम की बी।
संदा-का-संदा सोग्या छा खा’र
फेर बैठी छी खाबा,
तड़का की सेळी च्यार रोट्यां ले’र
अर करती गी बातां
घर का धणी सूं
कांई-कांई होग्यो काम,
अर घटग्यो कांई-कांई
तड़काऊ म्हं बेगी उठबा कै लेख
काल को काम
सोचती-सोचती ही सोगी
जस्यां फरकणी अर परथुई
चालती तो रह छै!