म्हारै घोर मएं

पडी ग्यो है

गोर नो सांदो

रोटला माथै मैली

फोडी नै खावा हारू

नती म्हारै पाए कांदो

खेतर हाकवा वारा गुंदा

भगवान नै घेरे पूग्या

नै अणा कार वर मएं

खावा पीवा नां वांदा वेटवा

नै म्हनै कांटा सोटाड़वा हारू

म्हारै शारी आड़ी

थूएर नै धतूरा ऊग्या।

काम नो सुकारो

नै दूध तो ऊकारो

घणा दाड़ा वाड़ नै जोबैं

पाणी वना

खेतर नै डील

सब हुकाई ग्यं

नै सेतरं वना

घोर नं मनकं सब

नागं धड़ांग थाई ग्यं

अधूरी पड़ी नैहरै

नै बंद पड़ी

कन्ट्रोल नी दुकान

मोटका नै पण्णा ब्बा नी वेरा

आब्बा देवानी नथी।

बीग लागै के

घोर नी जुवणियात थाती नानी

नै कुंवारो मोटको

के वाड़ डाकी नै

म्हारू मुडू कारू नै करी नाकै

रांडुवु तकात के नती मलतु

जेणे थकी

गरवाई खावा फांदो

नाकी शकूँ

नै हैती मुसीबतं नै

घड़ी वार में

मटावी शकू !

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : विनोद भट्ट ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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