बैठो रै बाळम परदेसा नै गोरी जोवै बाट,

लिख लिख भेजां म्है संदेसा बाळम बैघो आव।

मिलणै री आस जगी बैघो आजै बालम,

जोबन तो मारो गदरायो ज्यू लागै फल जामण।

तू बुजातो पाणी छै जोबन री म्है आग,

लिख लिख भेजां म्है संदेसा बाळम बैघो आव।

बैठो रै बाळम परदेसा गोरी जोवै बाट,

लिख लिख भेजां म्है संदेसा बाळम बैघो आव।

काई मानै भूल गयो म्हारै नलदन रा बीर,

घरो नाही आयो इण काजळी तीज।

मोह माया में पडीया पीव जी

रूपया दीठै च्यारू कनी,

लिख लिख भेजां म्है संदेसा बाळम बैघो आव।

बैठो रै बाळम परदेसा गोरी जोवै बाट,

लिख लिख भेजां म्है संदेसा बाळम बैघो आव।

साजन बन जा काळो भवरो म्है बन लू फूलवारी,

दोनू मिल प्रित बडावो इण रै भरी जवानी।

साजन बिन काई सासरियो जावू मेतो पीर,

कै आई जाजो बाळम इण गणगोरा री तीज।

सूना लागै था बिन पीव जी सोळा सिणगार

लिख लिख भेजां म्है संदेसा बाळम बैघो आव।

बैठो रै बाळम परदेसा गोरी जोवै बाट,

लिख लिख भेजां म्है संदेसा बाळम बैघो आव।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : रामाराम चौधरी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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