लुगायां कहती रैवै कै
ओक बार देखल्यां
पीर का रूंखड़ा
जद बै पूरो जीवण औरूं
देखबा री बात करे
फेर आवैं हेरा अर उठे ओक रळक
बै याद करै जद, बरसती बिरखा में
खेत की सींव कै सारै
रोपेड़ी ओक डाळी अर
गुवाड़ कै बीचूंबीच
ओरेड़ो अंक बीज
अब जिका रूंख बणग्या
बां ई रूंखड़ां री ओळ्यूं
कदै ना बिसरै लुगायां कै मन सूं
पीर आळा सींव सातरा अर बाड़-गुवाड़ रा
रूंखड़ां री बानैं ओळ्यूं आवै
अर हिरदो बस आई चावै कै
बठै जाय र फेर बरस जावैं
बांरी आंख्यां री बादळ्यां
अर बां रूंखड़ां रा झिरता पानड़ां कै सागै
छंट ज्याय मन की सगळी पीड़...।