पतझड़

री पीड़

हरीयाली जाणैं।

खिलण सूं पैला

कळी नै कोई

तोड़ ले जावै

गुमसुम हुवता

रूखड़ा री पीड़

माली जाणैं।

स्रोत
  • पोथी : बगत अर बायरौ (कविता संग्रै) ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • प्रकाशक : साहित्य सरिता, बीकानेर ,
  • संस्करण : संस्करण
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