अंधारै में

लालटेण रौ

धीमौ चानणो

म्हारो परस

फगत अंदाजै सूं

थारै मुंडै रो

इण बेळा नै

म्हारी आंख्यां

घणी उडीकी

जद आपां बणायौ

एक पवित्तर मेळ

आपां री

पवितर प्रीत है

सबदां अर बातां रौ

कांई चरित नीं।

म्है

थाम देवणों चाऊं

एक लम्बै आंतरै तांई

इण रात रै

इण अंधारै नै

क्यूं कै म्है राजी हूं

इण घड़ी

थारै परस पेटै।

बस थू

ध्यान राखजे

खूटै नीं

थांरो हेत

थारी प्रीत

रात

अर

लालाटेण में किरासणीं!

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 5 ,
  • सिरजक : नरेंद्र व्यास
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