बटाऊ सारू

आजकाल

कागला कुण उडावै

जे मजबूरी में आवै

बटाऊ

तद आंवतांईं

चल्या जावै।

स्रोत
  • सिरजक : दुष्यंत जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै