आंपा

परकत रा पूत

अकल राखां अकूत

पण

परवाह नीं करी

परथमी री

इणरी ओझड़ी उधेड़ता रया

नवी नवी कुपीतां कर

दूवता रैया

दुधाळ गाय ज्यूं

सुइयां रा तबोड़ा ठोक।

गिनरत नीं करी

आवण आळी अबखाई री

जंगळ नै जीमता रया

भाखर रै भोड रौ

भौ बिगाड़ दियौ

लालच री लुचाई सूं।

भौतिकता रौ भोडळ

भुरकावण रै जतनां में

जुतियोड़ा रया बळद ज्यूं

अर

धरा नै बिडरूप करण में

कोई कसर नीं राखी आंपा।

छेवट छेह दियौ

अर

काठी कायी हुयां

असल रूप ओळखायौ

मिनख री कारगुजारी रौ।

अजै चेतौ तौ ठीक

नीतर चैरासी तय है।

स्रोत
  • सिरजक : भंवरलाल सुथार ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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