धरती अर आभो बांट्यां पछै
आओ आपां पांती करां-
रंगां री ।
ओ भगवो म्हारो
ओ हरो थारो।
धोळै रो कोई कोनी धणी!
कबूतरां भेळो उडावणो पड़सी
इण अणचाइजतै रंग नैं
अणथाग आभै में।
लीलै री तो लीला ई न्यारी है
आभै सूं उतर’र रळ जावै झील में
झील सूं पूग जावै मरवण री आंख्यां में
काळै माथै हरेक दावो करै
इण माथै चढै कोनी
बीजो कोई रंग
नीं दीसै मैल-चीकणास।
रातै रंग रो कांई करां इलाज
आंख्यां साम्हीं आवतां ई
पाछी एकमेक कर देवै
सगळी ढिगळ्यां।