ऊनाळौ आव तांई
पाणी रा तोटा
पड़ण लागता
ऊनाळौ ढळ तांई
बिरखा रितु आवण
सूं पैलां ईज
लैवता
टांकां री सार सांभाळ
टांकां माथै नूंवा
झैला देय’र
नूंवी पायां (कांटां सूं)
सजाय’र राखता।
जमावता काळकी
माटी रौ आगोर
जकी लावता
बोळ नाडी सूं,
पगां सूं खूंद
धमकै सूं कूट
जमावता आगोर
जिणसूं बरसात
रौ पाणी जावतो
टांके मांयनै।
बरखा आवण सूं
पैला खोलता
जूनकी साळ री
परनाळ
जिणसूं छत रौ
पाणी जावतो
टांके मांयनै।
मीठै पालर पाणी सूं
भरीज जावतो टांको
बरस भर पीवता
मीठो पाणी
जिणरी एक-एक बूंद
कीमती निगै आवती
इण सारूं कै
पाणी रौ तोटो हो।
उणीज टांके माथै
पीवतो एवड़
तैलकी तोड,
रातीयौ जाखौडो
अर वा गोरकी गाय।
उणी’ज टांके रै
पालर पाणी सूं
बणतौ खाणों
जकौ जीमण नै
घणौ चोखो लागतौ-
इणरा दोय कारण
एक तो मीठो पाणी
अर दूजौ देसी धान।
टांके रै आगोर में
ऊगतो एक
नैनो दूधैली रौ पौधो
जिणरो दूध
लगावता
फटी बवाई माथै।
आज टांकां बूरीजग्या
नीं रैयौ पाणी रौ मोल
शहरां में देखूं
उण लुगायां नै
जकी घर नै
नित ऊगै
झाड़ू री जगां
पाणी सूं साफ करै
जद देखूं
शहरां री सड़कां
अर गळियां मांय
पाणी ई पाणी
भरियोड़ौ निगै आवै
तो म्हानै
याद आवै
टांके रा आगोर
जमावता वौ
बाळपणै रा दिन
जद समझ में
आवै
पाणी रौ मोल।