पतौ नीं म्हनै 
क्यूं लागै 
कानून पांगळौ 
जद कोई मिनख 
जाण-बूझ’र 
आपरी 
नानी सी 
बेटी रो 
इलाज कोनी 
करावै 
अर वा 
भगवान री 
प्यारी 
होय जावै। 
 
                 
                
                    
                        स्रोत
                            
                                    - 
                                        पोथी : जागती जोत जनवरी 1996
                                            ,
                                    
 
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                                        सिरजक : राणुसिंह राजपुरोहित
                                            ,
                                    
 
                                    - 
                                        संपादक : गोरधनसिंह शेखावत
                                            ,
                                    
 
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                                        प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर