मुरग्यां नीं हां,

भेड़ां हां म्हे!

म्हारी कोई

खाल उधेड़ै

नसड़ी बाढै

ऊन उतारै

सीयां मारै

म्है बोलां नीं!

म्हारै तन-मन री गिरमी

ऊनी गाभा मांय समेट्यां

पैर्यां - ओढ्यां

बेंत लियां बै

खड्या दड़ूकै!

म्हारी

गिणती री ताकत

बेंत बणी है

बां रै हाथां!

जिण रै बळ सूं

कुबधी छळ सूं

कर गठबंधन

हांकै म्हानैं

डाम लगावै

चांकै म्हानैं!

मन मरजी सूं

गिरवी राखै म्हानैं,

अर म्हारी धरती नैं

जिण माथै

म्हे करां जुगाळी...

पण

कद तांई?

स्रोत
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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