बूंट

आपरी शान-शौकत अर् रूप पर

पौमावतो, फूंदा हिलावतो,

इतरावतो, पास पड़ी चप्पलां री

मजाक बणावतो बोल्यो—

“म्हारी जामण,

आपां रो धणी एक

पण कठै थूं अर् कठै मूं।

म्हारा पर धणी

कितरो हेत दरसावे

घड़ी-घड़ी सहलावे, चमकावे

पण थारी सूरत देखतां ही

व्यांनै अबकाई आवे।”

चप्पलां बोली—

“रे डोफरायला,

चमच्यां जियां

धणी रे चिपक’र

पगचम्पी करण री गुलामी

म्हासूं नी हो पावे।

थारी जियां तळवा चाटबो

म्हनै कोनी आवे।”

स्रोत
  • पोथी : अणकही ,
  • सिरजक : कैलाश मण्डेला ,
  • प्रकाशक : यतीन्द्र साहित्य सदन (भीलवाड़ा) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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