आडो ढकूं ओलो करूं

कूंटो खड़काऊं

सैना सूं समझाऊं

जठै तक हुवै सामीं नीं जाऊं

सुसरो जी रै!

जद बै चल्या जावै दफ्तर

अर म्हैं बारै...

खुलो मूंढो, खुला केस

बगूं बेधड़क!

दुनिया जाणै

सगळी भलाई रो सैंरूप

अर सुसरोजी सूं इज हुवै

डर म्हनैं

बै इज पराया...

कांई पड़दो है?

स्रोत
  • पोथी : अंतस दीठ ,
  • सिरजक : रचना शेखावत ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम