ऊँचे अडाण माथै
अबखी जागा अळूझियोड़ा
आंख्या अदीठ, ऊंधै माथै पड़िया...
मुंडो लुका'र सिसकता सुपना।
डिगतो, डरपीजतो...
खुणै खोचरे
धूझतो ऊबो निबळो धीरज...
हूंस छोड़तो हिवडो
लेवे धपळका...
बुझते दिवले रै उनमान।
इण ई'ज बिचाळे...
बगत रे ढीले ढोलिये...
खूंटी खांच.. नेहचै निरांत सूती निरासा...
दिन रै सैंचनण उजास में ई लखावै
घोर अँधार...
कसक री कटार... दुधार
काळजे रे आरपार...
मनड़ो जाणे सून्याड़ रोही में...
ऐकलो ऊबो सूखो रूंख
नागो, बूचो...
लेवड़ा उकलियोडी छाती...
चौफेर कांटा ही कांटा...
जूण ने झुरै...
पण...
पण....
कदै कदास...
सताजोग...
ऐक आध आस रूपी
सुरंगी सोनचिड़ी
भूली भटकी आ'र नचीती बैठ टहुकै...
कुचरै आपरी पांखा...
अर...
अर मुधरी मुधरी मुळकै।
जद...
हाथोहाथ थरपीजजा...
मनडै रो मण्डाण।
पांगरण लागै पसवाड़ै ई'ज
नवी नकोर...
काची झाग...
कंवळी कंवळी कूंपळां।
हरियल व्है जा
हिवड़ै रो रूंख...
फुलड़ा गरवीजै...
पान पान में पसरीजै...
हरियल सुपनां रो हैज।
सौरभ करै सोळै सिणगार...
अर मोद तो मावै ई कोनी...
चातरंग चिड़कली मौजां मांणै...
बिसाई लेय'र टुर जा...
नी जाणै कठीनै...
अर जोवे बाट सगळां ही...
आस री उण अणदीठी
चिड़कली री...
कुण देखी कुण जाणी...
कद आसी?
फकत म्है ई पण जोवूं हूँ...
उण री ई'ज बाट...
के कद आसी वा...
अर...
अर...
पूरी करसी...
म्हारी
आ अधूरी कविता....