दा’जी कै तांई

अटकळ सूं

अठन्नी देर

पाँच को सिक्को लेर

पोतो घणो हरक्यो।

दा’जी भी जाणताँ सताँ

बण्या र्‌या-अणजाण।

क्यूंकै-ऊमर नै

यो तो देई द्यो छो

बस्वास

कै अस्यां अेक दन लेज्यागो पोतो

वांकी उमर भर की कमाई,

अर ओळखाण।

खुद की ओळखाण।

बणाबा लेखै।

स्रोत
  • पोथी : धरती का दो पग ,
  • सिरजक : गोविन्द हाँकला ,
  • प्रकाशक : क्षितिज प्रकाशन (सरस्वती कॉलोनी, कोटी) ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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