दा’जी कै तांई
अटकळ सूं
अठन्नी देर
पाँच को सिक्को लेर
पोतो घणो हरक्यो।
दा’जी भी जाणताँ सताँ
बण्या र्या-अणजाण।
क्यूंकै-ऊमर नै
यो तो देई द्यो छो
ऊ बस्वास
कै अस्यां ई अेक दन लेज्यागो पोतो
वांकी उमर भर की कमाई,
अर ओळखाण।
खुद की ओळखाण।
बणाबा लेखै।