नवी पीढी रा जोगा कवियां!

इतिहास री विडंबनावां

अर सत्ता री स्याणप रा भरमायोड़ा

मत ना गुणमुणावौ

वीरगाथा, भगतीगाथा

व्है सकै तौ नवेसर मांडौ साधारण गाथा

मानव गाथा!’

मत ना बिरदावौ देवां नै

आदमी नै बखांणौ

जिकां नै थे आज अर कालै देख्यौ छौ

जिकौ सूरज री आंच माथै रोटियां सेकतौ छौ

जिकौ काढतौ छौ समदर सूं तेल

जिकौ बीणै छौ कोयलां री खानां में हीरा

जिकौ हेरै छौ रूंखां रा रस में औखदां।

सुणौ!

कविता नै आपरै बखत री बारखड़ी बणावौ

आपरै समिया रा मटमेला अर लोहीझांण साच नै

कुचमाळौ!’

बडकां री बात सुण नवा कवि बोल्या—

''म्हे करां आपरौ कह्यौ

म्हे मांड सकां अजोगता सिल्प में झीणी बातां

सपना सारू ठाय सकां

कविता में ठावी-ठीकी ठौड़

म्हे दिल्ली बखांण सकां, बखांण सकां देस

दीन-दुनिया

खाडा-खोचरा, नाळा-खाळा

अढार भार वनापाति, चूकती वनराय

लोकतंतर री आवगी रामायण!

जिकै रै हवालै सूं देवौ छौ भुलावण

अेक भासा व्हिया करती छी।''

‘बडकां!

म्हांनै भासण नीं भासा चाहीजै

जिणमें आरसी री जात

म्हैं जोय सकां आपरी पीढी रौ उणियारौ

म्हे प्रतम अर असली मांयलौ फरक काढणी चावां

साच रौ प्रतम साच नीं व्है जाणणी चावां-

सै कीं भासा टाळ नीं व्है सकै

म्हां भासा-बायरां नै तळौ मत

नवा कवि छां पण घणौ कीं कैवौ मत।’

स्रोत
  • पोथी : अबोला ओळबा ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : सर्जना, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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