रोळ राज रो डंडो, मरुधरियै में रोळ मचावै।

काकड़िया सा कंवळा पर, हुकम आपरो चलावै॥

रोळ राज रो डंडो...

लूंट मचावे धोळ दुपारै, भोळा नैं भरमावै।

कूड़-कपट री करै कमाई, धन-धन आपरी करावै॥

रोळ राज रो डंडो...

बांठ-बांठ में बैठा हाकम, गिंडका ज्यूं गरळावै।

उपरा-उपरी करै चूरमा, पिंडी पकड़ खा ज्यावै॥

रोळ राज रो डंडो...

कागदां रा कारीगर ओ, नाडी-नाडोळयां खोदावै।

थोथो पेट भरै नही यांरौ, फैर पाछी बुरावै॥

रोळ राज रो डंडो...

भांत-भंतीला टेक्सां हे, माणस हेटो दब रैयो।

रोळ राज रा रासा देख, पांणी पतळो पड़ रैयो।

रोळ राज रो डंडो...।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 5 ,
  • सिरजक : विनोद सारस्वत
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