म्हैं कांई मांगूं?

थूं कांई देय सकै??

उणरै बाद भी

थारै साम्हीं हाथ फैलावूं

थारा गुण गावूं

दिन भर खून नै

पसीनो बणावूं

फेरूं हाथ फैलावूं...

उणरै बाद भी

थूं आधी मजूरी हाथ माथै धरै

कांई करै!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : मधु आचार्य 'आशावादी'
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