चेतना री चूंदड़ी है लीरालीर,
किणनै चितारणी मांय रैवै,
आपरी ऊंघ मांय
आयोड़ा सपना सांगोपाग।
किणनै लागै है पदारथ री
चीरफाड़ रौ आंधौ खुमार,
किणनै चढ़ै है अवल्ल पंथ री
नासेट रौ सुधरौ नसौ,
सूरजिया लाख हजारूं अंतस मांय,
कुण खोलै है उण रा बारणा,
जद मिनख बणियौ है ढांढ़ौ
तो किणनै कैवां चेतनपंथी।
कुण सोधै है
अवचेतन रा पट,
कोय नी पळटै है अठै,
अदीठै असीम अलख
अंतस रा आदु पाना।
ओ चेतनपंथी!
चिळकतै गात मांय
फाट्योड़ी आत्तम
जचै कोनी थनै।