ओ बाबुल तेरी ओळ्यूं आवै,
नैनन नीर बरसतो जावै,

ज्यों सर्दी में जलती लकड़ी,
त्यों मीठी आग हृदय में जलती,
मुस्कानों से मुखड़ा ढकती,
पर अंतर ज्वाला रोज धधकती,

जितनी गाढ़ी करूं आत्मा,
उतनी हूक उमड़ती आवै,
ओ बाबुल तेरी ओळ्यूं आवै, 

वो गलियां वो दरखत बुड्ढे,
वो आंगन बीच काट के मुड्ढे,
जो चंचल लगते थे पहले,
अब हो गए सब माटी के गुड्डे,

तुझ बिन आंगन ओप ना आवै,
ओ बाबुल तेरी ओळ्यूं आवै,
बगीचे बीच लोहे का झूला,
तू भूला वो तुझको नहीं भूला,
कब से हुक्का गुड गुड नहीं बोला
तेरी आवन आस लगाए भोला,

तुम बिन उनको कौन रिझावै,
ओ बाबुल तेरी ओळ्यूं आवै,
यादों की बिजली हिया जलावै,
दुख की बदली उमड़ी आवै,
रिमझिम नैनन सावन छावै,
रुके न धार सड़क सी आवै,

तुम बिन कौन जो धीर बंधावै,
ओ बाबुल तेरी ओळ्यूं आवै ,

जन्मभूमि जग ने छुड़वा दी,
नियम कायदों से देहरी बंधवा दी,
पर अब के बाबुल ऐसे बिछड़े
कि फिर मिलने की आस छुड़ा दी,
अब कौन लिपट कर हिए लगावै,
ओ बाबुल तेरी ओळ्यूं आवै। 
स्रोत
  • पोथी : हिन्दी मासिक पत्रिका ,
  • सिरजक : नीलम शर्मा नीलू
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